किताबों के पन्नो को पलट कर सोचते है
युँ पलट जाये मेरी जिंदगी तो क्या बात हैं ॥
ख्वाबों में रोज मिलते है जो
आज हकीक़त में आये नज़र तो क्या बात है ॥
कुछ मतलब के लिए आते है सभी
बिन मतलब कोई आये तो क्या बात है ॥
क़त्ल कर के तो सब ले जायेंगे दिल मेरा
कोई बातों से चुरा ले जाये तो क्या बात है ॥
जो शरीफों के शराफत में बात न हो
वो एक शराबी कह जाये तो क्या बात है ॥
अपने जिन्दा रहने तक देंगे सबको ख़ुशी
जो हमारी मौत पे भी कोई मुस्कुराये तो क्या बात है ॥
मनीष देव
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