दिल के राज़ - चंद अल्फाज़


kehna bahut kuch chahte the unhe
Par zuba ne saath na diya
kabhi waqt ki khamoshi me khamosh rahe hum
toh kabhi unki khamoshi ne kuch kehne na diya.......

कुछ यह भी रँग रहा इन्तिज़ार का
आँख उठ गयी जिधर बस उधर देखते रहे
- असर

हाथों की लकीरों में ही जब न हो वजूद किसी का
जोड़ें भी तो जोड़ें तक़दीरें कोई कैसे?
- मुन्तज़िर

आप के पास ज़माना नहीं रहने देगा
आप से दूर मुहब्बत नहीं रहने देगी
- मुनव्वर राना

चाँदनी रात में वो छत पर टहलना तेरा,
ख़ुदा ख़ैर करे, जब दो-दो आफ़ताब रहे।।

मुहब्बत रँग लाती है जब दिल से दिल मिलते हैं ,
बड़ी मुश्किल तो यह है कि दिल मुश्किल से मिलते हैं

वादा ए वफ़ा का निभौं कैसे,
चाँद हूँ में तो दिन में नज़र आऊ कैसे
आँखो में बिखरा हुआ कोई पिछले पहर का ख्वाब हूँ मैं
पुकारे भी कोई तो अब इन आँखो में समाऊ कैसे

सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता,
निकलता आ रहा है आफ़्ताब आहिस्ता आहिस्ता
- अमीर मीनाई

राही तुम ठहरना बस दो पल

समय बहता जाता कल कल
राही तुम ठहरना बस दो पल।।

करनी तुम से कुछ बातें
अतीत बन गई मुलाक़ातें
उनको जीवंत करने दे दो ये पल।।

तुम मशरूफ़ अपनी चाह में
हम खड़े वहीं उसी राह में
ये सोच,शायद मेहरबा,हो कोई पल।।

ज़्यादा वक्त नहीं लेना तुम्हारा
बस पलकों में छुपाना अक्स तुम्हारा
जाने फिर कब तुम लौटो और कब ये पल।।

राही तुम ठहरना बस दो पल।।

कोई क्या करेगा प्रीत का अंकन

कोई क्या करेगा प्रीत का अंकन
मासूम हृदय का ये धड़कता स्पंदन।।

शब्दों का मोहताज नहीं नयनों से होती मनुहार
अपेक्षा कहाँ उपहारों की विश्वास करता सत्कार
माटी भी लगती सुरभित चंदन।।

चाह कुछ नहीं प्रेम से माँगे नहीं प्रतिदान
मन से मन जहाँ मिले सर्वप्रथम बलिहारी मान
आत्मपटल पर भावों का मंचन।।

मीरा बनी दीवानी कबीर हुआ मस्ताना
प्रेम रस में भीग-भीग समर्पण का रचा अफ़साना
पीतल नहीं हैं खरा कंचन।।

प्रतीक्षा के पल

जहाँ भी देखूँ तुम्हीं हो हर ओर
प्रतीक्षा के पल फिर कहाँ किस ओर।।

चेहरे पर अरुणाई-सी खिल जाती
धड़कनें स्पंदन बन मचल जाती
यादों की बारिश में नाचे मन मोर।।

कब तन्हा जब साथ तुम बन परछाई
साथ देख तुम्हारा खुदा भी माँगे मेरी तनहाई
मेरे हर क्षण को सजाया तुमने चित्त चोर।।

मेरे संग संग चाँद भी करता रहता इंतज़ार
तेरी हर बात को उससे कहा मैंने कितनी बार
फिर भी सुनता मुसकुराकर जब तक न होती भोर।।

तुम्हारे लिए हूँ मैं शायद बहुत दूर
तुम पर पास मेरे जितना आँखों के नूर
मेरी साँसों को बाँधे तेरे स्नेह की डोर।।