फूल पर हँस कर अटक मत

फूल पर हँस कर अटक मत, मंज़िलें मनुहार करती।
कंटकों की चुभन भी तो, सहज कुछ संस्कार भरती॥

सुख-मय स्वर्णिम साँझ-सवेरा झिगमिग करती रातें,
सपनीली संकल्पी दुनिया, सच करनी है बातें,
सुख-दुःख दोनों डगर सुहानी, मन को पुलकित करती,
कुन्ती का वरदान प्रभो! दुःख भक्ति, भाव की धरती,
जीवन कुंदनमयी कष्टों में, तप कर आब निखरती॥
फूल पर हँस कर अटक मत, मंज़िलें मनुहार करती॥

पौरुष की हो प्रखर निशानी, तेरी आत्म-कहानी,
रहे अनाविल सदा जवानी, मृदु मधु सत्य जुबानी,
तूफ़ां-तम के घेरों में फँस, कभी नहीं जो डरती,
आत्म-दीप विश्वासी अम्बर, सारी बाधा हरती,
फौलादी संकल्प साथ तो, नैया पार उतरती॥

फूल पर हँस कर अटक मत, मंज़िलें मनुहार करती॥
कंटकों की चुभन भी तो, सहज कुछ संस्कार भरती॥

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