क्या जीत लिखूँ, क्या उसे हार लिखूँ
कैसे लफ़्जों में वो पहला प्यार लिखूँ॥
वो लम्हें अब भी जवाँ ज़हन में ,
जवाँ है वो सारे ही नज़ारे
फिर कैसे धड़कती धड़कनों को बीती बात लिखूँ॥
अरमानों ने खेली थी प्रीत से होली ,
अश्क़ भीगे उस रंग से आजतलक
फिर कैसे फीकी फीकी वो रंगीली फाग लिखूँ॥
साथ उसका नहीं हाथ की लकीरों में ,
मेरी ग़ज़लों की बन गया वो तक़दीर
फिर कैसे सुरीली मुहब्बत को तन्हाई की रात लिखूँ॥
दिल हार कर पाये कुछ पल सौगात में ,
उस हर पल में समाया आनन्द इबादत सा
फिर क्य़ूँ ख़ुद को मीरा उसको घनश्याम लिखूँ॥
न जीत लिखूँ न अब कोई हार लिखूँ ,
दुनिया से बचाकर अपना दिलनशी प्यार रखूँ॥
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