जो चाहो तो


किसी द्वीप में किसी घाट पर कोई दीप जलाओ तो,

एक हाथ मेरा भी शामिल कर लेना जो चाहो तो।

कहीं किसी सूने जीवन-मन्दिर में दीप जलाओ तो,

एक दीप मेरा भी शामिल कर लेना जो चाहो तो।।

जो बचपन से हैं बेगाने अनजाने जो रिश्तों से,

जैसे तैसे चुक जाती हैं साँसें जिनकी किश्तों में,

उन साँसों में अपनेपन का कोई स्पंद जगाओ तो,

एक स्पंद मेरा भी शामिल कर लेना जो चाहो तो।।

खिलने से पहले जो कलियाँ तुफानों में झूल गईं,

इतने मिले प्रहार जगत में मुस्काना जो भूल गईं,

उन आँखों में मुस्कानों का कोई रंग रचाओ तो,

एक रंग मेरा भी शामिल कर लेना जो चाहो तो।।

उखड़ी साँसों में अनुभव की जोत लिए जो एकाकी,

कोई आए दर्द बटाएँ कह लेना भी तो काफी,

आँख पनीली में पुलकन की कोई रुत दे पाओ तो,

रुत मेरी भी उसमें शामिल कर लेना जो चाहो तो।।

निज सम्मुख निज कृति का उठना विवश हृदय ने झेला,

निराधार मन सोच रहा क्या दूर अभी संध्या-बेला,

उन निरुपायों के मन-आँगन आशा सूर्य जगाओ तो,

एक किरण मेरी भी शामिल कर लेना जो चाहो तो।।

स्वार्थों ने सबंधों पर हैं जब से अपनी बाजी जीती,

ऊपर चमक-दमक हैं भरी भीतर से जो रीती-रीती,

ऐसी ज़िंदगानी में निश्चल संवेदन बन पाओ तो,

मेरा संवेदन भी शामिल कर लेना जो चाहो तो।।

कहीं किसी सूने जीवन-मन्दिर में दीप जलाओ तो,
एक दीप मेरा भी शामिल कर लेना जो चाहो तो।।

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