दिल के राज़ - चंद अल्फाज़


kehna bahut kuch chahte the unhe
Par zuba ne saath na diya
kabhi waqt ki khamoshi me khamosh rahe hum
toh kabhi unki khamoshi ne kuch kehne na diya.......

कुछ यह भी रँग रहा इन्तिज़ार का
आँख उठ गयी जिधर बस उधर देखते रहे
- असर

हाथों की लकीरों में ही जब न हो वजूद किसी का
जोड़ें भी तो जोड़ें तक़दीरें कोई कैसे?
- मुन्तज़िर

आप के पास ज़माना नहीं रहने देगा
आप से दूर मुहब्बत नहीं रहने देगी
- मुनव्वर राना

चाँदनी रात में वो छत पर टहलना तेरा,
ख़ुदा ख़ैर करे, जब दो-दो आफ़ताब रहे।।

मुहब्बत रँग लाती है जब दिल से दिल मिलते हैं ,
बड़ी मुश्किल तो यह है कि दिल मुश्किल से मिलते हैं

वादा ए वफ़ा का निभौं कैसे,
चाँद हूँ में तो दिन में नज़र आऊ कैसे
आँखो में बिखरा हुआ कोई पिछले पहर का ख्वाब हूँ मैं
पुकारे भी कोई तो अब इन आँखो में समाऊ कैसे

सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता,
निकलता आ रहा है आफ़्ताब आहिस्ता आहिस्ता
- अमीर मीनाई

3 टिप्‍पणियां:

mahboob ने कहा…

MANN KE BAAT.......AKSHARO KE SAATH......DOOOR TAK PAHUNCH RAHI HAI....NICE SHER-O-SHAYERI..

बेनामी ने कहा…

padhne mein to bahut aachaa laga par saamaj emin kuch nahi aaya.

google speedy cash ने कहा…

hey sacch me bhut accha ha