अपने को ही करूँ समर्पित, मैं अपना यह प्यार सखे!!

नेह पाश में बाँधे ऐसे, तोड़ चुकी मैं तार सखे!
अपने को ही करूँ समर्पित, मैं अपना यह प्यार सखे!!

आकर्षण आकाश निहारा, कहीं न कोई मिला किनारा
आगे से आगे पाने की प्यास, श्वास बन करे इशारा
शान्ति सदन की झलक मिलेगी, इससे कोसों पार सखे!
अपने को ही करूँ समर्पित, मैं अपना यह प्यार सखे!!

अन्तस्थल के नीलगगन में, आत्मसूर्य का सदा उजारा
जड़ता के उस पार पहुँचकर, ही पाया कुछ नया नज़ारा
क्षण क्षण चेतन दीप मिला है, आज मुझे उपहार सखे!
अपने को ही करूँ समर्पित, मैं अपना यह प्यार सखे!!

नाद ओम का चले अनाहत, कण्ठों में अर्हम् सुखकार
‘आनन्दो में वर्षति वर्षति’ हर पल कहता हृदय उदार
मुक्त गगन में मुक्त मनुज ने पाया नव अवतार सखे!
अपने को ही करूँ समर्पित, मैं अपना यह प्यार सखे!!

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